Piparia Dialogue

 

हिन्‍दी रपट /English Report

नगरीय जलप्रदाय पर प्रादेशिक जल संवाद

पि‍परिया (होशंगाबाद) 25 दिसंबर 2014

 

कार्यवृत्त

जल संवाद संयोजन समिति, पिपरिया और मंथन अध्‍ययन केन्‍द्र, बड़वानी द्वारा 25 दिसंबर 2014 को आयोजित प्रादेशिक जल संवाद में वक्ताओं ने पानी के निजीकरण पर चिंता व्‍यक्त करते हुए जलप्रदाय को नगरीय निकायों की जिम्‍मेदारी बताया। चार सत्रों में आयोजित संवाद को विषय विशेषज्ञों और स्‍थानीय नागरिकों ने संबोधित किया। संवाद में नवनिर्वाचित नगरपालिका अध्‍यक्ष तथा स्‍थानीय विधायक और दर्जनभर नवनिर्वाचित पार्षदों ने भी हिस्‍सा लिया। चर्चा सत्र में बड़ी संख्‍या में स्‍थानीय नागरिकों ने अपने सवाल एवं प्रतिक्रियाऍं व्‍यक्त की।

PIpariya-1सर्वप्रथम कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्‍ज्‍वलन से हुआ। इसके बाद नवचेतना स्‍कूल की बालिकाओं द्वारा सरस्‍वती वंदना प्रस्‍तुत की गई। अतिथि परिचय श्री गोपाल राठी ने करवाया।

विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्‍ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता श्री राजेन्‍द्र हरदेनिया ने कहा कि पानी जीवन का अभिन्न अंग है और इसके बिना जीवन की कल्‍पना ही नहीं की जा सकती है। अन्न के बिना तो कुछ दिन जीवित रहा जा सकता है लेकिन पानी के बगैर ऐसा संभव नहीं हैं। हमारे समाज में प्‍यासे को पानी पिलाना पुण्‍य का काम माना जाता रहा है। लेकिन अब परिस्थितियॉं ब‍दल रही है। इस जीवनदायी प्राकृतिक संसाधनों पर देशी-विदेशी कंपनियों को एकाधिकार दिया जा रहा है ताकि इससे मुनाफा कमाया जा सके। हमारी नीतियॉं और जीवन शैली नदियों को मार रही है। संविधान में भी पानी को मौलिक अधिकार में शामिल नहीं किया गया है। उन्‍होंने क्‍योटो (जापान) में वर्ष 2003 में आयोजित वर्ल्‍ड वाटर फोरम के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्‍होंने वहॉं महसूस किया कि वैश्विक स्‍तर पर नीतियॉं तो पूँजीवादी देश और कार्पोरेट तय करते हैं हम तो सिर्फ उन्‍हें लागू करते हैं। 8 करोड़ की जलप्रदाय योजना 24 करोड़ की हो गई। बढ़ाई गई लागत की राशि जनता की जेब से गई है। उन्‍होंने पिपरिया के नागरिकों से आव्‍हान किया कि वे चैतन्‍य रहें और जलप्रदाय योजना से संबंधित मुद्दों पर अच्‍छे से विचार करें ताकि कोई उन्‍हें सोते से न बेच सके।

प्रथम सत्र

शिक्षाविद् डॉ. अनिल सदगोपाल ने 19 वीं सदी से औद्योगिकीकरण का इतिहास मानव इतिहास की बहुत दु:खद रहा है। अमेरिकी पूँजीपतियों ने लेटिन अमेरिकी देशों में भारत से भी ज्‍यादा अत्‍याचार किए है। अमेरिकी सेना द्वारा स्‍थानीय निवासियों का दमन कर पनामा नहर बनाई ताकि अद्योगों में तैयार माल सस्‍ते में यूरोप तक भेजकर अमेरिकी उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाया जा सके। उन्‍होंने उदाहरणों से सिद्ध किया कि निजी पूँजी वास्‍तव में निजी नहीं होती है। उद्योगपति अपने दम पर आगे नहीं बढ़ते बल्कि राजनैतिक गठजोड़ से सार्वजनिक धन को लूटकर वे आगे बढते हैं। कंपनियों के फायदे के लिए पूँजीवादी देश किसी भी मामले में हस्‍तक्षेप को न्‍यायिक सिद्ध कर देते हैं। चाहे मध्‍य पूर्व के देशों में अमेरिकी हस्‍तक्षेप हो या भारत में पैक किया हुआ मध्‍यान्ह भोजन देने की योजना हर जगह निजी कंपनियों के फायदा मुख्‍य मुद्दा रहा है। इराक में तेल संपदा पर नजर थी तो भारतीय स्‍कूलों के मध्‍यान्‍ह भोजन के 25 हजार करोड़ के बड़े बजट पर। उल्‍लेखनीय है कि स्‍कूल में बनाए जाने वाले ताजे मध्‍यान्‍ह भोजन को विटामिन और सूक्ष्‍म पोषक तत्त्वों की कमी वाला बताकर यूनीलीवर, कारगिल, प्रोक्‍टर एण्‍ड गेंबल जैसी बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुँचाने का प्रयास चल रहा है और बिल एण्‍ड मेलिण्‍डा गेट्स फाउण्‍डेशन इसके पक्ष में माहौल बना रहा है। उन्‍होंने जन-निजी भागीदारी या पीपीपी का जनहित से कोई संबंध नहीं है वह तो सिर्फ निजी क्षेत्र को फायदा पहुँचाने का तिकड़म मात्र बताते हुए निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे पीपीपी को खत्‍म करें।

PIpariya-2राजीव गॉंधी जलग्रहण मिशन (मध्‍यप्रदेश) के पूर्व सलाहकार श्री केजी व्‍यास ने संवाद कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए बताया कि जब सरकारी योजनाओ के बारे में जनता जनार्दन के बीच विमर्श होगी तो इससे लोकतंत्र मजबूत होगा। उन्‍होंने पानी पर समाज की मालिकी का इतिहास बताते हुए कहा कि मनुस्‍मृति में जलस्रोतों को गंदा करना और नष्‍ट करना अपराध की श्रेणी में रखा गया है। मुगलिया दौर में इसे खुदा की नेमत बताते हुए इसे नुकसान पहुँचाने की मनाही थी। अंग्रेज इस देश में व्‍यापारी के रुप में आए। उन्‍होंने वे काम किए जिनसे पैसा मिलता था। ईस्‍ट इण्डिया कंपनी ने कानून के माध्‍यम से देश के संसाधनों और सेवाओं को नियंत्रित किया। पानी को भी सरकार के अधीन घोषित कर दिया गया। नदियों से सीमित पानी लेने का अधिकार था तो नहरों से पानी लेने के नियम थे। अंग्रेजों ने नहरों और बॉंधों में निवेश इसलिए किया कि उससे मुनाफा कमाया जा सके। हालांकि अंग्रेजों के बनाए कानून देश की आत्‍मा के अनुरुप नहीं थे लेकिन आजादी के बाद उन्‍हें ही ज्‍यों के त्यों स्‍वीकार कर लिया गया। भारतीय संविधान में पानी को राज्‍य का विषय माना गया है लेकिन केन्‍द्र इसके बारे में नीति बना सकता है जो राज्‍यों के लिए मार्गदर्शी सिदधांत की तरह होती है। देश में 1987 में पहली जल नीति बनाई गई थी जिसमें 2002 और 2012 में बदलाव किए गए। इन नीतियों से सरकार ने अपनी भूमिका बदली है। जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए नियामक ढॉंचे की वकालत की जा रही हैं। उनका विचार था कि पानी को लेकर चाहे जितने कानून बनें लेकिन हर गॉंव-कस्‍बे के साथ हर प्राणी को उसकी जरुरत का पानी मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। संविधान के अनुच्‍छेद 21 में जीने के अधिकार में पानी का अधिकार अंतर्निहित है। उन्‍होंने नदियों प्रदूषण पर चिंता व्‍यक्त करते हुए कहा कि शास्‍त्रों में कलकल-छलछल बहने वाली धारा को नदी कहते हैं। प्रकृति ने नदी को महत्तवपूर्ण काम सौंपा है – प्रकृति और जीवन के लिए नुकसानदेह गंदगी की बरसात के दिनों में सफाई करना। इसलिए नदियों का कलकल-छलछल बहना जरुरी है।

पैनल सदस्‍य के रुप में टिप्‍पणी करते हुए श्री शैलेष रॉय ने कहा कि सार्वजनिक पूँजी को कार्पोरेट घराने हथिया रहे है। श्री तुलाराम बेमन ने कहा कि पेयजल का व्‍यावसायीकरण नहीं होना चाहिए। हमारे जलस्रोत ही छीन लिए जाऍंगें तो गरीब जनता पीने का पानी कहॉं से लाएगी। उन्‍होंने कहा कि जलस्‍वराज हमारा अधिकार है। श्री कमर एहमद में कहा कि देश में अनाज उत्‍पादन लगातार बढ़ता जा रहा है लेकिन गरीब को उपलबध नहीं है। पानी पर एकाधिकार के कारण अब हमें पानी भी राशन दुकान से लाईन में लगकर खरीदना पड़ेगा। उन्‍होंने सवाल किया कि जब 2025 तक पिपरिया में पानी का संकट नहीं है तो फि‍र यहॉं जलप्रदाय योजना को लेकर इतनी हड़बड़ी क्‍यों है?

द्वितीय सत्र

मंथन अध्‍ययन केन्‍द्र के श्री रेहमत ने बताया कि पिपरिया पानी के मामले में समृद्ध है और यहॉं तुरंत किसी योजना की आवश्‍यकता नहीं है। यूआईडीएसएसएमटी के तहत निर्माणाधीन पिपरिया की नई नर्मदा जल आवर्धन योजना के कारण कई सारे बदलाव करने होंगें। इससे न सिर्फ जल दरें बल्कि संपत्तिकर की दरें भी बढ़ाई जाएगी और मलनिकास कर भी लगाया जाएगा। सारे सार्वजनिक नलों को बंद कर दिया जाएगा और 4348 बीपीएल परिवारों सहित सभी को आवश्‍यक रुप से नगरपालिका के नल कनेक्‍शन दिए जायेंगें और अंतत: योजना का पीपीपी के तहत निजीकरण किया जाएगा। यूआईडीएसएसएमटी के तहत प्रदेश के 99 नगरों में 2367 करोड़ लागत की पानी से संबंधित 114 योजनाओं पर काम जारी है। पिपरिया में 22 बोरवेलों से रोजाना 45 लाख लीटर जलप्रदाय होता है जो नगर की 48,828 जनसंख्‍या के हिसाब से 87 लीटर/व्‍यक्ति/दिन होता है। नगर के 60 प्रतिशत इलाके में ही नगरपालिका की वितरण लार्इनें है और यदि जलप्रदाय से नगर की इस 40 प्रतिशत आबादी (19531 जनसंख्‍या) को कम कर दिया जाए तो शेष 29,297 लोगों को रोजाना 148 लीटर जलप्रदाय हो रहा है। जबकि सरकारी मानकों के अनुसार नगर की दैनिक जरुरत मात्र 26 लाख लीटर ही है।

PIpariya-3नई जलप्रदाय योजना की लागत बढ़ाई जाना समझ से परे हैं। योजना का पहला डीपीआर जनवरी 2006 में बना था तब उसकी लागत 7 करोड़ 87 आंकी गई थी। जून 2011 में यही लागत बढ़ा कर 24 करोड़ 81 लाख कर दी गई। जबकि थोक मूल्‍य सूचकांक के ऑंकड़ों के अनुसार इस अवधि में महँगाई में वृद्धि मात्र 58 प्रतिशत हुई थी और योजना की लागत बढ़कर मात्र 12 करोड़ 47 लाख होनी थी लेकिन लागत में 12 करोड़ 34 लाख की अतिरिक्त वृ‍द्धि कर दी गई। हालांकि अलग-अलग कारणों से योजना की लागत अभी भी बढ़ाई जा रही है और यह लागत 30 करोड़ तक जा सकती है।

योजना की सहमति के पूर्व नगरीय प्रशासन विभाग और नगरनिकाय के बीच होने वाला कानूनी अनुबंध (मेमोरण्‍डम ऑफ एग्रीमेंट या रिफार्म एजेण्‍डा) बहुत ही लापरवाही से तैयार किया गया है। ऐसा लगता है कि हस्‍ताक्षर करने के पूर्व इसे किसी ने पढ़ा भी नहीं। कॉपी-पेस्‍ट की गलती के कारण अनुबंध पहले बिन्‍दु से प्रारंभ होने के बजाय 91 वें बिंदु से हुआ है। इसके अलावा नगरीय निकाय विभाग से किसी भी अधिकार के हस्‍ताक्षर नहीं है। दूसरे पक्ष के रुप में केवल मुख्‍य नगरपालिका अधिकारी के हस्‍ताक्षर हैं। दोनों गवाह भी पिपरिया नगरपालिका के कर्मचारी हैं।

रिफार्म एजेण्‍डा के अनुसार वर्ष 2010-11 में पिपरिया की जलप्रदाय व्‍यवस्‍था पर सालाना खर्च 82.3 लाख तथा वसूली मात्र 8.38 प्रतिशत यानी 6.90 लाख थी। बाद में 2011-12 और 2012-13 में प्रयास कर वसूली को बढ़ाकर एक तिहाई कर दिया गया था लेकिन 2013-14 में वसूली फि‍र से घटकर 16 प्रतिशत पर आ गई। यदि जलप्रदाय खर्च इतना ही रहे तथा शतप्रतिशत वसूली संभव हो सके तो भी यूआईडीएसएसएमटी की शर्त के अनुसार पूर्ण लागत वसूली हेतु जल दरों को 3-4 गुना बढ़ाना पड़ेगा। नई योजना का सालाना संचालन-संधारण खर्च ढाई करोड़ से कम नहीं होगा और उसके बाद तो जल दरों में कम से कम 7 गुना वृद्धि करनी पड़ेगी। इतनी वृद्धि की मार गरीब जनता कैसे सहेगी? इतनी बड़ी दरवृद्धि और उसकी वसूली नगरपालिका कैसे कर पाएगी। स्‍पष्‍ट है कि जलप्रदाय योजना का निजीकरण करना होगा जो पिपरिया की आम जनता के लिए परेशानी का सबब बनेगा।

शिवपुरी में पेयजल योजना के निजीकरण के बारे में श्री रेहमत ने कहा कि वहॉं के जलप्रदाय का ठेका फ्रांसिसी बहुराष्‍ट्रीय कंपनी वियोलिया की सहयोगी दोशियन लिमिटेड को दिया गया है। योजना के तहत 40 किमी दूर मड़ीखेड़ा बॉंध से पानी लाया जाएगा। कंपनी 80.71 करोड़ की योजना का निर्माण यूआईडीएसएसएमटी के तहत किया जा रहा है जिससे तहत 90 प्रतिशत राशि सरकार द्वारा उपलब्‍ध करवाई जाती है। कंपनी योजना निर्माण कर 23 वर्षों तक उसका संचालन करेगी। कंपनी द्वारा प्रारंभिक जल दरें 15.40/किलोलीटर घोषित की है जो अत्‍याधिक है। बिजली दर, कच्‍चे पानी की रायल्‍टी अथवा पानी को प्रभावित करने वाले किसी अन्‍य घटक की कीमतों में वृद्धि‍ होने पर कंपनी द्वारा जल दरें बढ़ाई जा सकती है।

अनुबंध की धारा ‘नो पैरेलल कंपीटिंग फेशिलिटी’ द्वारा कंपनी को शहर के जल पर एकाधिकार दे दिया गया है। कंपनी द्वारा जलप्रदाय शुरु करने के बाद नगरनिगम या प्रदेश सरकार को भी जलप्रदाय का अधिकार नहीं रह जाएगा। कंपनी के मुनाफे को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक और निजी जलस्रोतों पर भी पाबंदी लगाई जा सकती है। योजना शुरु होने पर जलप्रदाय का संचालन-संधारण खर्च 6-7 गुना बढ़ जाएगा जो जलदर बढ़ाकर नागरिकों से वसूला जाएगा। हालांकि कंपनी द्वारा अतिरिक्त 8 करोड़ की मॉंग के साथ योजना का पिछले डेढ़ वर्षों से काम रोक दिया गया है।

नर्मदा जल संघर्ष समिति, खण्‍डवा के श्री तरुण मण्‍डलोई ने कहा कि बड़ी योजनाऍं कमीशन के चक्‍कर में बनाई जाती है। जितनी ज्‍यादा लागत होती है कमीशन भी उतना ही ज्‍यादा होता है। खण्‍डवा में पेयजल प्रदाय करने वाली निजी कंपनी विश्‍वा इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर्स को खण्‍डवा के जलस्रोतों पर एकाधिकार दे दिया गया है। हमने इसके खिलाफ जनजागृति की। घर-घर जाकर जनमत सर्वेक्षण किया। अधिकांश लोगों ने पेयजल के निजीकरण को नकार दिया। इसके बाद सरकार को जिला पंचायत के मुख्‍य कार्यपालन अधिकारी की अध्‍यक्षता में एक स्‍वतंत्र समिति गठित करनी पड़ी। समिति की रिपोर्ट में भी पेयजल का निजीकरण नहीं किए जाने की अनुशंसा करते हुए जलप्रदाय को नगरनिगम की ही जिम्‍मेदारी बताया। उन्‍होनें कहा कि इस चुनाव में पानी का निजीकरण प्रमुख मुद्दा रहा। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्‍यमंत्री को सार्वजनिक रुप से स्‍वीकार करना पड़ा कि खण्‍डवा में पानी का निजीकरण नहीं किया जाएगा। हालांकि चुनाव जीतने के बाद फि‍र से बोरवेल उखाड़ना करना प्रारंभ कर दिया था जिसे जनता ने रोका। इस संबंध में उच्‍च न्‍यायालय में एक याचिका भी दायर की है जिस पर न्‍यायालय ने जनता को राहत दी है। खण्‍डवा के ही श्री मनोहर शामनानी ने खण्‍डवा में पेयजल के निजीकरण के खिलाफ पिछले 7 वर्षों से जारी अभियान का ब्‍यौरा देते हुए पिपरिया की जनता को आगाह किया कि वे किसी झांसे में न आऍं तथा योजना को अच्‍छे से समझकर निर्णय लें। उन्‍होंने कहा कि मुख्‍यमंत्री कई बार बोल चुके हैं कि प्रदेश और खण्‍डवा में पानी का निजीकरण नहीं किया जाएगा। लेकिन खण्‍डवा में फि‍र से निजीकरण की अधिसूचना जारी कर दी गई थी जिसे जनदबाव में वापस लेना पड़ा।

पैनल सदस्‍य के रुप में टिप्‍पणी करते हुए श्री गोपाल राठी ने कहा कि कंपनियॉं अब पानी का व्‍यापार करने लगी है। पिपरिया की योजना इतनी महँगी है कि संचालन खर्च की वसूली कठिन हो जाएगी और योजना का निजीकरण करना पड़ेगा जिससे गरीब-मध्‍यम वर्ग दोनों को कठिनाई आएगी। श्री उम्‍मेदसिंह पटैल ने जल के व्‍यावसायीकरण पर चिंता व्‍यक्त करते हुए जलस्रोतों को प्रदूषण से बचाने का आव्‍हान किया। श्री प्रकाश मण्‍डलोई ने पिपरिया की जनता को साधुवाद देते हुए कहा कि वह समय पर जागृत होकर विचार कर रही है। पिपरिया की जलप्रदाय योजना योजना संविधान विरोधी, जनविरोधी और लूट के लिए बनाई गई करार देते हुए नगरपालिका से इसे रोकने की मॉंग की। उन्‍होंने योजना को 35 साल के लिए प्रचारित किए जाने को हास्‍यास्‍पद बताते हुए कि जिम्‍मेदार लोग जनता की वर्तमान की तकलीफ तो समझ नहीं रहे हैं दूर भविष्‍य की तकलीफें कैसे समझेंगें।

तृतीय सत्र

तीसरे सत्र में श्री गौरव द्विवेदी ने कहा कि सरकार अपनी नीतियों में बदलाव कर व्‍यापारीकरण को बढ़ावा दे रही है। नागरिकों को बुनियादी सुविधाऍं देने के बजाय उन्‍हें उपभोक्ता में बदला जा रहा है। जलप्रदाय व्‍यवस्‍था का भी निजीकरण हो रहा है। यह केवल अपने देश में ही हो रहा हो ऐसा नहीं है। दुनियाभर में ऐसा हो रहा है। कई उदाहरणों से प्रतीत होता है कि संयुक्त राष्‍ट्र संघ भी निजी कंपनियों की तरफदारी कर रहा है। हालांकि इंग्‍लेण्‍ड, फांस आदि देशों पानी का निजीकरण काफी पुराना है लेकिन अब कई देशों में अब जलप्रदाय व्‍यवस्‍था को निजी कंपनियों से छुड़ा कर नगरीय निकाय पुन: अपने हाथों में लिया जा रहा है। पेरिस की नगरपालिका ने निजी कंपनी के 45 वर्ष के अनुबंध का नवीनीकरण नहीं किया तथा जलप्रदाय अपने हाथ में ले लिया। इस प्रक्रिया को पुनर्निगमीकरण या रिम्‍युनिसिपलाईजेशन कहा जा रहा है। इस समय कई नगरीय निकायों में पुनर्निगमीकरण की प्रक्रिया या तो जारी है या पूर्ण हो चुकी है। पेरिस, बर्लिन, दारे सलाम (तंजानिया) कुआ लालम्‍पुर (मलेशिया), अकरा (घाना) ब्‍यूनस आयर्स (अर्जेंटीना), लापाज (बोलिविया) में पुनर्निगमीकरण हो चुका है जबकि नागपुर (महाराष्‍ट्र), खण्‍डवा (मध्‍यप्रदेश), जकार्ता (इंडोनेशिया), बार्सिलोना (स्‍पेन), सोफिया (बुल्‍गारिया) आदि स्‍थानों पर इसके लिए अभियान जारी है।

वरिष्‍ठ पत्रकार श्री र‍वीन्‍द्र शुक्‍ला ने कहा कि प्रकृति में पानी एक निश्चित मात्रा में ही उपलब्‍ध है। औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण में प्रतिस्‍पर्द्धा चल रही है लेकिन विकास की अंधी दौड़ में इसके मितव्‍ययी उपयोग को नज़रअंदाज किया जा रहा है। कंपनियों को आमंत्रित किया जा रहा है लेकिन यह ध्‍यान नहीं दिया जा रहा है कि उन्‍हें पानी कहॉं से देंगें। इसलिए सबसे पहली जरुरत यह है कि हम पहले यह तय कर लें कि हम जिस तरह का विकास करना चाहते हैं उसके लिए पानी उपलब्‍धता है या नहीं। उन्‍होंने सवाल किया कि हम पर्यावरण संरक्षण के लिए जो पानी छोड़ रहे हैं क्‍या वे पर्याप्‍त हैं। विकास की कोई अवधारणा दिखाई नहीं देती है।

पानी का उपयोग जरुरत के मान से मुख्‍यत: 4 मदों में आकलित किया जाता है। ये चार उपयोग हैं – घरेलू, कृषि, औद्योगिक और पर्यावरणीय जरुरत। इन चारों घटकों के लिए कितना और किस प्रकार पानी लगने वाला है इसका विस्‍तृत अध्‍ययन कर मैंने मध्‍यप्रदेश प्रदेश में अगले 20 वर्षों के जल प्रबंधन परिदृश्‍य पर एक पुस्‍तक ‘वाटर मेनेजमेंट इन सेंट्रल इंडिया: 20 ईयर पर्सपेक्टिव’ लिखी है।

मध्‍यप्रदेश से 10 बड़ी नदियॉं निकलती है और यहॉं पानी का वैसे संकट नहीं है। अंतर्राज्‍यीय समझौतों के बाद राज्‍य के लिए 56 अरब घनमीटर (बीसीएम) पानी उपलब्‍ध है। यदि जल उपयोग का यही तरीका जारी रहा तो अगले 20 वर्षों में या वर्ष 2031 तक मध्‍यप्रदेश पानी के घाटे की स्थिति वाला राज्‍य हो जाएगा। यह घाटा उपलब्‍धता के मान से जरुरत की गणना करने पर करीब 2 अरब घन मीटर (बीसीएम) तक हो सकता है। उन्‍होंने योजनाओं को विकेन्द्रित रुप से तैयार किए जाने की वकालत की।

समापन सत्र

चर्चा एवं र‍णनीति हेतु खुले सत्र में सर्वश्री किशोर डाबर ने जलस्रोतों के प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए नागरिकों का आव्‍हान किया कि पूजन सामग्री को जलस्रोतों के बजाय जमीन में विसर्जित किया जाना चाहिए। अवधेष शर्मा ने कहा कि इस योजना पर व्‍यापक विचार कर आने वाले संकट को टाला जा सकता है। श्रीगोपाल गांगूड़ा ने कहा कि उपयोग किए गए फलों के बीजों को बचाकर बारिश के दौरान नर्मदा के किनारे या उचित स्‍थान पर बिखेर देना चाहिए ताकि हरियाली बढ़े एवं जल संरक्षण हो। गोपाल राठी ने कहा कि ऐसी योजनाऍं दिल्‍ली-भोपाल में बनती है और इसकी कीमत चुकाने वाले नागरिकों की राय नहीं ली जाती है। तरुण मण्‍डलोई ने मोहल्‍ला समितियों के गठन को प्राथमिकता देने पर बल दिया। कमर एहमद ने दूर के स्रोत से जलप्रदाय करने के औचित्‍य पर सवाल उठाया। लक्ष्‍मण पटैल ने कहा कि इस संवाद से आगे बढ़कर स्‍पष्‍ट रणनीति बनाकर लड़ाई लडने की जरुरत है। प्रकाश मण्‍डलोई ने जनसमुदाय से आग्रह किया कि गलत ऑंकड़ों के माध्‍यम से नागरिकों पर अनावश्‍यक योजना थोपने वालों, परसेंटेज के चक्‍कर में लागत बढ़ाने वालों और टेण्‍डर हो जाने के बाद भी लगातार योजना लागत बढ़ाते रहने वालों की जिम्‍मेदारी तय कर उनके खिलाफ कार्रवाई की संभावना तलाशी जानी चाहिए।

PIpariya-4सर्वश्री संजीव दुबे ने उपस्थित जनसमुदाय से मुखातिब होते हुए कहा कि जो गर्मजोशी आज देखी जा रही है यदि वही कुछ वर्ष पहले दिखाई जाती तो यह योजना हम पर थोपी नहीं जाती। कमर एहमद ने सार्वजनिक जलस्रोतों पर निजी कंपनियों के आधिपत्‍य पर चिंता जताते हुए नगर के प्रबुद्ध वर्ग की एक समिति गठित करने का सुझाव दिया ताकि ऐसे खतरों का सामना किया जा सके। श्रीगोपाल गांगुड़ा ने मोहल्‍ला स्‍तर तक जनजागरण का सुझाव दिया। ओमप्रकाश सोनी ने बिजली-पानी जैसे संसाधनों की बर्बादी रोकने का प्रयास करने का सुझाव दिया। यदि हम पानी का संरक्षण करने लगे तो अगले 100 सालों तक पानी की कमी नहीं होगी। कैलाश सराठे ने प्रादेशिक जल संवाद को एक शुरुआत बताते हुए कहा कि इसके परिणाम भविष्‍य में देखने को मिलते हैं। तुलाराम बेमन ने कहा कि पिपरिया की जलप्रदाय योजना के बारे में जानकर महसूस हुआ कि शहर को मुर्दा बनाने का प्रयास किया जा रहा है इसलिए लिए जागरुक बनने की सख्‍त जरुरत है। श्रीकृष्‍ण शर्मा ने अच्‍छे काम की शुरुआत खुद से करने की बात की। राजन गोदानी ने पिपरिया की स्थिति भी खण्‍डवा की तरह होने से रोकने पर बल दिया। पार्षद हरीष बेमन ने कम खर्च में इस योजना के संचालन का तरीका खोजने का प्रयास करने की बात कही।

सत्रावसान पर पैनल सदस्‍य श्री राजेन्‍द्र हरदेनिया ने जनविरोधी नीति-कानूनों पर टिप्पणी करते हुए करते हुए कहा कि वर्तमान में तो किसान अपने कुऍं से नि:शुल्‍क पानी ले सकता है लेकिन आगे ऐसा करना संभव नहीं हो पाएगा। सारा पानी सरकार का हो जाएगा। बिजली की सब्सिडी खत्‍म हो जाएगी। सरकार नागरिक सेवाओं से पल्ला झाड़ लेगी।

सत्र में हुई चर्चा का सार प्रस्‍तत करते हुए श्री अवधेष शर्मा ने हमारे का कि आज के संवाद से शासकीय पाखण्‍ड उजागर हुए हैं। भयावह सच्‍चाई का पर्दाफाश हुआ हैं। यह चिंता का विषय है कि हमारे जलस्रोत हमारे नियंत्रण में नहीं रहेगें। इन पर नागरिकों का नियंत्रण कायम करने के लिए संघर्ष जरुरी है। संसाधनों को समाज के अधिकार में रखने के लिए गॉंधीजी द्वारा बताया गया रास्‍ता व्‍यवहार में लाऍं। इस संबंध में नगर पालिका से संवाद करेंताकि लोगों पर भार कम पड़े।

कार्यक्रम के अंत में नर्मदा सफाई अभियान में लगे साण्डिया के श्री रामजी दीक्षित और नन्‍हेलाल सोनी, बीजनवाड़ा के श्री बलराम पटैल और गाड़ाघाट के दिलीपसिंह पटैल का सम्‍मान किया गया।

प्रादेशिक जल संवाद सहभागियों और संवाद को सफल बनाने में सहयोग करने वाले सभी सहयोगियों का आभार श्री ओमप्रकाश भार्गव ने माना। संवाद कार्यक्रम हेतु नि:शुल्‍क उपलब्‍ध करवाए गए ‘आनंद भूमि’ हाल के लिए डॉ व्‍यास के प्रति विशेष रुप से आभार प्रकट किया गया।

कार्यक्रम का समयबद्ध संचालन श्री किशोर डाबर ने किया।

ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ज्‍न्‍ 

State Level Consultation on Municipal Water Supply

in Pipariya (Madhya Pradesh)

Minutes

The water supply scheme implemented in Pipariya under Urban Infrastructure Development Scheme in Small and Medium Towns (UIDSSMT) is part of the research and documentation activities undertaken by Manthan Adhyayan Kendra, Badwani (MP). At present in Pipariya, 22 borewells supply around 4.5 million liters water per day to a population of 48,000. It comes to average 87 liters per capita per day (LPCD) of water supply. However, only 60% of the town is connected with the distribution pipelines. The per capita water supply in exact terms then goes up accordingly to 148 LPCD which is better than the official standards required for water supply in a small town. However, despite this a new scheme costing Rs 24 crore has been sanctioned under UIDSSMT is Pipariya. Manthan had collected and analysed information related to this project during the past several months. This information was shared during the recently organised consultation in Pipariya with the local people. A short report of the consultation is as follows.

Short Report of the Consultation

PIpariya-5The state level interaction on municipal water supply in Pipariya was organised by Jal Samvad Sanyojan Samiti, Pipariya and Manthan Adhyayan Kendra, Badwani (MP) on 25th December 2014. The consultation water attended by local MLA, newly elected President of Municipal Council, around a dozen local councilors, experts on water issues and a large number of local people. During the discussion the speakers expressed their concerns about privatisation of water and stated that municipal water supply delivery is a responsibility of the municipal body. The discussions were organised in four sessions during the day which included right to water, privatisation of water resources and services, water laws, status and conservation of water resources, reform based water supply schemes in the state and the process of remunicipalisation of water services globally. At the end of each session as well as during the open session several members of the audience shared their concerns and reactions on the proposed changes and privatisation of water supply schemes in the state. The local citizens stated that such reform schemes are non-participatory and non-transparent and also an impediment to the realisation of right to water. They also stated that there needs to be a wider consultation before undertaking any such reform processed further. The newly elected president of the municipal council also expressed a desire to discuss the scheme in Pipariya with Manthan team members for better understanding.

PIpariya-6During the introduction session Shri Rajendra Hardenia, a senior social activist and associated with a local public water management campaign in Pipariya stated that water is a vital component of life and without it life cannot be imagined. However, there are attempts to control and monopolise water services as well as resources. While sharing his experiences during the World Water Forum in Kyoto (Japan) in 2003, he said that policies are made by the capitalist countries and large private companies the local governments are only used to implement them on their own people.

In the first session, well known educationist Dr Anil Sadgopal said with regards to privatisation that private capital is not actually private. Industrialists exploit public money with political influence and use it for their own profits. He further emphasized that public private partnerships (PPPs) have no connection with larger public good. It is just an arrangement to deliver private profits. He appealed to the people’s representatives to stop PPPs in public welfare projects.

Shri KG Vyas, former advisor Rajiv Gandhi Watershed Mission (Madhya Pradesh) said that under article 21 of the Constitution of India guarantees right to life and that it includes right to water. Hence, water delivery to every citizen of the country should be ensured. He also talked about how the laws governing natural resources like water have been formed since the British period in India.

PIpariya-7In the second session, Shri Rehmat of Manthan Adhyayan Kendra, talked about water supply schemes under UIDSSMT in Madhya Pradesh including in Pipariya. He said that under UIDSSMT, 114 reform based schemes are being implemented in 99 urban local bodies in the state at a cost of Rs 2367 crores. He shared that under the UIDSSMT reforms agenda water supply tariffs as well as property taxes will be increased to make local bodies financially sustainable and attractive for private companies. He stated that under schemes like UIDSSMT public stand posts will be dismantled and each poor household will be provided an individual connection. He said that under the reforms agenda municipal bodies like Pipariya will have privatise water supply services. An analysis of the information provided by the Pipariya Municipal Council shows that there was no need for the new scheme since the existing water supply system can supply water to the estimate population of 2024 – 25 based on the water supply standards of the government.

In Madhya Pradesh municipal water supply has already been privatised in Khandwa and Shivpuri towns under UIDSSMT. In Khandwa private contract has been awarded to Vishwa Infrastructures and Services Limited and in Shivpuri Doshian Limited has been awarded the contract for operation and maintenance of water supply for 23 years. In both the towns local communities have not accepted the privatisation contracts and local campaigns are ongoing. Tarun Mandloi from Khandwa shared that due to the campaign against private water supply in the town, the state government had to form an independent committee to investigate the objections against the project. The committee in its recommendation report submitted to the government stated that municipal water supply is a responsibility of the local body and should be privatised. During the recently held municipal elections privtisation of water supply was a major issue and while campaigning the chief minister of Madhya Pradesh had to announce publically that water supply will not be privatised in Khandwa.

PIpariya-9In the third session, Gaurav Dwivedi of Manthan Adhyayan Kendra talked about the process of remunicipalisation in several countries across the world wherein municipal bodies are taking back control of water supply services from the private companies. For instance in Paris and Berlin recently, water supply services have been taken back into public hands and private contracts for water supply have not been renewed. In places like Paris, Berlin, Dar-e-salaam (Tanzania), Kuala Lumpur (Malaysia), Accra (Ghana), Buenos Aires (Argentina), Cochabamba and La Paz (Bolivia) have observed remunicipalisation process. In places like Nagpur (Maharashtra), Khandwa (Madhya Pradesh), Jakarta (Indonesia), Barcelona (Spain), Sophia (Bulgaria) campaigns are ongoing demanding this.

In this session, Shri Ravindra Shukla, senior journalist and author of the recently published book titled “Water Management in Central India: 20 Year Perspective” said that water is available in finite quantity in nature. However, the current model of economic growth and development does not consider this and ignores the prudent use of the resource. He said that water availability needs to be assessed to desire the kind of dveelopment that we want. He advocated that schemes should be developed in a decentralised manner to be more effective.

PIpariya-8During the open discussion session the local people reacted strongly against such reforms and schemes based on these. They stated that keeping in mind the water supply status in Pipariya there is no need for such an expensive scheme for the town. Senior social activist Shri Gopal Rathi said that the politics behind this expensive scheme needs to be understood. He pointed out that recovery of operations and maintenance cost of this expensive scheme will be difficult and raising tariffs will increase the problems faced by low income and marginalised groups. People’s representative Shri Ummaid sing Patel said that commercialisation of water is a concern and we need to protect water resources from pollution. Retired officer of Prasar Bharti Shri Qamar Ahmad said that ignoring local water resources and transporting water from far-off is not understandable. Former President of Janpad Shri Shailendra Rai said that use of public money for private gain needs to be condemned. Local journalist Shri Prakash Mandloi claimed that action should be taken against people who have prepared the scheme. Local councilor Harish Beman said that a way should be found to operate this scheme with low maintenance cost.

The discussion during the open session was summarised in the end and it was a general consensus that the consultation has brought useful insights about the project in public domain. It is a concern that water resources will not be in control of the local people. An awareness program should be undertaken upto ward level to keep these in public hands. People also need to talk to the municipal body in this regard so that the cost burden over the people is less. After the meeting the president of the municipal council of Pipariya expressed his desire to speak to team members of Manthan and further understand the issues and impacts of the scheme. Manthan is currently working on organising more such meetings and consultations with local people and groups across the state on water issues.

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