जल क्षेत्र में जन-निजी भागीदारी
Public-Private Partnerships in Water Sector: Partnerships or Privatisation? का हिन्दी अनुवाद “जल क्षेत्र में जन-निजी भागीदारी : भागीदारी या निजीकरण?“ नाम से किया गया है।
आजकल जन-निजी भागीदारी (पीपीपी) को बुनियादी ढॉंचा विकास के संबंधित हर मर्ज की एक दवा के रुप में प्रस्तुत किया जा रहा है। सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे, पानी, जलनिकासी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, यातायात आदि सभी क्षेत्रों में पीपीपी परियोनजाऍं हैं। इसीलिए यही सही समय है कि हम पीपीपी परियोजनाओं और उनकी उपयोगिताओं का परीक्षण करें कि क्या वह सार्वजनिक क्षेत्र की समस्याओं को हल करने में सक्षम है।
देश में बुनियादी ढॉंचा विकास में निजीकरण के बजाए पीपीपी को मान्य किया जाना, भारत में लागू की गई परियोजनओं की मौजूदा स्थिति, बुनियादी ढॉंचा विकास के लिए वर्तमान लागत आंकलन तथा भविष्य के लिए प्रस्तावित निवेश आदि मुद्दों पर यह पुस्तिका दृष्टि डालती है।
पीपीपी के पक्ष में दिए गए तर्कों के विश्लेषण के अलावा अभिशासन (गवर्नंस) से जुड़े पहलुओं जैसे-पारदर्शिता, जनभागीदारी, सूचनाओं की उपलब्धता एवं नियमन की चर्चा भी इसमें की गई है। साथ ही विश्व के विभिन्न हिस्सों में चल रही पीपीपी परियोजनाओं के अनुभवों तथा सार्वजनिक सेवाओं के लिए पीपीपी के क्रियान्वयन के समय बरती जाने वाली सावधानियों की आवश्यकतओं का भी जिक्र इसमें किया गया है।
पुस्तक में पानी जैसी आवश्यक सार्वजनिक सेवा के निजीकरण से व्यवस्था संबंधी जिम्मेदारी, सेवाप्रदाय और समानता जैसी सामाजिक बाध्यताओं पर पीपीपी के प्रभावों का विश्लेषण किया गया है।